एक कविता - एक विचार
उस क्षण तक जीने देना मुझको
जब मै और वह
एक डूबते जहाज़ के डेक पर सहसा मिलें ,
दो पल तक ना पहचान सकें एक- दूसरे को
फ़िर मै पूछूं
'कहिये, आपका जीवन कैसा रहा?'
"मेरा..........? आपका कैसा रहा?'
'मेरा.............?'
और जहाज़ डूब जाए।
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अनेक बातें अपनी शक्ति, सीमा और अधिकार से परे होती हैं। मन धीरे- धीरे उनसे समझौता कर लेता है- भले ही कड़वाहट के साथ।
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