Tuesday, June 19, 2012

एक कविता, एक विचार


हमने सब कुछ जिया- बस जिया नहीं अपने को
हमने रिश्ते जिए- प्यार नहीं.
पद जिए- सार नहीं.
अभिमान जिया- ह्रदय नहीं.
दीवारें जीं- विस्तार नहीं.
शब्द जिए- प्राण नहीं.
समेटते रहे बिखरे हुए क्षणों का कूड़ा
जीवन के नाम पर.

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ऐसी मानवीय भावनाएं और विचार भी होते हैं जो वक्त की हलकी सी हवा में भी उड़ जाते हैं. मगर कुछ ऐसे भी होते है जिन्हें जिंदगी के तेज़ से तेज़ तूफ़ान भी न तो इधर उधर बिखेर सकते हैं और ना ही उड़ा सकते हैं.


Sunday, August 9, 2009

ए़क कविता, ए़क विचार

मर्यादाओं को एक नशीली खुशी की तरह जीना
अकेलेपन को दावत देना है।
पहाड़ की ऊंचाई देखने वाले
नहीं देख पाते हैं
उसका पथरायापन,
मर्यादाओं को जीना
इसी पथरीलेपन को जीना है।
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"तू नहीं जनता की तू कितना ताकतवर है। तूने अगर अपने लिए ईमान चुना है तो फ़िर चुनने को और बचा क्या है?
ईमानवाले के साथ दुनिया नहीं होती- अल्लाह होता है और अल्लाह भी अकेला है."

Monday, June 22, 2009

एक कविता - एक विचार

उस क्षण तक जीने देना मुझको

जब मै और वह

एक डूबते जहाज़ के डेक पर सहसा मिलें ,

दो पल तक ना पहचान सकें एक- दूसरे को

फ़िर मै पूछूं

'कहिये, आपका जीवन कैसा रहा?'

"मेरा..........? आपका कैसा रहा?'

'मेरा.............?'

और जहाज़ डूब जाए।

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अनेक बातें अपनी शक्ति, सीमा और अधिकार से परे होती हैं। मन धीरे- धीरे उनसे समझौता कर लेता है- भले ही कड़वाहट के साथ।

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Monday, June 1, 2009

Sunday, May 31, 2009

एक कविता - एक विचार

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ना आए फूल
कोई कांटा ही हरियाकर उग आए
कौन सी ज़मीन उठा लाऊं , कहाँ जाकर मै
की धीरे- धीरे ठूंठ होने में व्यस्त
विरस होता यह वृक्ष
कुछ और सावन झेल जाए।
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कभी- कभी जीवन में किसी एक दिन का विस्तार पूरे जीवन की परिधि को समेट लेता है।
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Saturday, May 30, 2009

एक कविता - एक विचार

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आग मेरी धमनियों में जलती है

पर शब्दों में नहीं ढल पाती

मुझे एक चाकू दो मैअपनी रगें काटकर दिखा दूँ

की कविता कहाँ है ...............

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इस तरह सूखो मत की अकड़कर टूट जाओ लेकिन इतने गीले भी मत बनो कि कपडे की तरह तुम्हे निचोड़ लिया जाए।

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