मर्यादाओं को एक नशीली खुशी की तरह जीना
अकेलेपन को दावत देना है।
पहाड़ की ऊंचाई देखने वाले
नहीं देख पाते हैं
उसका पथरायापन,
मर्यादाओं को जीना
इसी पथरीलेपन को जीना है।
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"तू नहीं जनता की तू कितना ताकतवर है। तूने अगर अपने लिए ईमान चुना है तो फ़िर चुनने को और बचा क्या है?
ईमानवाले के साथ दुनिया नहीं होती- अल्लाह होता है और अल्लाह भी अकेला है."
Sunday, August 9, 2009
Monday, June 22, 2009
एक कविता - एक विचार
उस क्षण तक जीने देना मुझको
जब मै और वह
एक डूबते जहाज़ के डेक पर सहसा मिलें ,
दो पल तक ना पहचान सकें एक- दूसरे को
फ़िर मै पूछूं
'कहिये, आपका जीवन कैसा रहा?'
"मेरा..........? आपका कैसा रहा?'
'मेरा.............?'
और जहाज़ डूब जाए।
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अनेक बातें अपनी शक्ति, सीमा और अधिकार से परे होती हैं। मन धीरे- धीरे उनसे समझौता कर लेता है- भले ही कड़वाहट के साथ।
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Monday, June 1, 2009
Sunday, May 31, 2009
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