Sunday, August 9, 2009

ए़क कविता, ए़क विचार

मर्यादाओं को एक नशीली खुशी की तरह जीना
अकेलेपन को दावत देना है।
पहाड़ की ऊंचाई देखने वाले
नहीं देख पाते हैं
उसका पथरायापन,
मर्यादाओं को जीना
इसी पथरीलेपन को जीना है।
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"तू नहीं जनता की तू कितना ताकतवर है। तूने अगर अपने लिए ईमान चुना है तो फ़िर चुनने को और बचा क्या है?
ईमानवाले के साथ दुनिया नहीं होती- अल्लाह होता है और अल्लाह भी अकेला है."

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