Sunday, May 31, 2009

एक कविता - एक विचार

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ना आए फूल
कोई कांटा ही हरियाकर उग आए
कौन सी ज़मीन उठा लाऊं , कहाँ जाकर मै
की धीरे- धीरे ठूंठ होने में व्यस्त
विरस होता यह वृक्ष
कुछ और सावन झेल जाए।
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कभी- कभी जीवन में किसी एक दिन का विस्तार पूरे जीवन की परिधि को समेट लेता है।
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